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धरित्रीमा भक्ति प्रणय अथवा जाँगर धरी खनी, खोस्री, जोती, करचरण माटोमय गरी।निकाली खाये त्यो अमृतमय खाना मिलिजुली जगत् सारा बन्थ्यो अमर नगरी झैं झिलिमिली।।11।।