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डुबी एकाम्मे भै अगम परमाऽऽनन्द चितिमा म उत्रें बिस्तारै अविदित कुनै दीर्घ मितिमा।खुल्यो थोरै आँखा, हृदय कलनाले फिरिफिरी हिलायो तत्कालै मृदु पवनले पल्लव सरी।।2।।