‹ ›
अनादि संसार विषे कुनै दिनजताततै स्त्री जति शून्य भैकननजन्मनू केवल पूरुषै किन?तँलाइ मालुम् छ कि यो कुरा मन बनेछ संयोग मिलेछ किं कथम् भए भनौं पूरुषमात्र के छ र स्वरूप फेर्लान् शिव मोहिनी बनी कवि स्वयं स्त्री स्वयमेव पूरुष।।17।।